कनकलता टहनी के नीचे
चाँद निकल के आया रे
मद्धम मद्धम अंखिया भिचे
पलकों से शरमाया रे
मेघा जल के लाल हुई
सोना सा मौसम आया रे
चार नैन दो नैन हुए
दो फलक आलिंगन हुए
चहु ओर चांदनी छाया रे
कनकलता टहनी के निचे
चाँद निकल के आया रे
सिसक सिसक के हवा चले
शबनम पत्तो पे अठखेल करे
मन मयूरी मोरा झूमे
सोना सा मौसम आया रे
वो आनेवाला मिलने मुझसे
सन्देशा हमने पाया रे
मन मतवाला झुमे ऐसे
सोना सा मौसम आया रे
कनकलता टहनी के नीचे
चाँद निकल के आया रे
कुहु कुहु पपीहा बोले
मद्धम मद्धम नदी बहे
अंखियो के दो फलको से
मन बदरा घनघोर करे
हिरनी जैसे मनवा डोले
मदहोश आलिंगन लाया रे
कनक लता टहनी के निचे
चाँद निकल के आया रे
वो आनेवाला मिलने मुझसे
संदेह हमने पाया रे
कनक लता टहनी के निचे
चाँद निकल के आया रे